बुधवार, 25 जुलाई 2012

"संस्कृत साहित्य रचना का इतिहास"  के  विमोचन  पर  डॉ0  चन्द्र  विजय  चतुर्वेदी , पूज्य  डॉ0 जयशंकर  त्रिपाठी , माननीय  दीनानाथ  मिश्र , पूर्व लोकसेवा आयोग अध्यक्ष डॉ0 के0 बी0 पाण्डेय एवं श्री बलबीर सिंह पुंज मंचासीन ।   


                                                                                                                      

 आदरणीय पाठक बन्धु "पूज्य  पंडित  जयशंकर  त्रिपाठी  व्यक्तित्व  एवं  कृतित्व " ब्लॉग  पर  आप  सभी  का हार्दिक  अभिनन्दन और  स्वागत है। यह  ब्लॉग  आप  लोगों  के  लिए  और पंडित  जी के व्यक्तित्व  एवं  कृतित्व  से  प्रभावित हुए सभी आदरणीय बंधुजनों के लिए पूज्य पंडित जी पर अपनी भावनावों  को  व्यक्त करने लिये मंच है  । इस मंच पर आप सभी  आदरणीय  बन्धुजन  सादर  आमंत्रित   है । हम आपका बेसब्री  से इन्तजार कर  रहें  है ।      

             

                    गुरूजी

गुरूजी
जो उम्र भर पढ़ाते रहे
और पढ़ते रहे लोग उनसे
विषय कोई भी अछूता न था
हर विषय पढ़ते रहे लोग उनसे
इतिहास हो ,हिन्दी हो या हो संस्कृत
विज्ञान और राजनीति की बात करते लोग उनसे
ज्योतिष हो , गणित हो या हो समाजशास्त्र
विधि और तंत्र की बात करते लोग उनसे
गुरूजी
जो उम्र भर पढ़ाते रहे
और पढ़ते रहे लोग उनसे
विद्यालय से अवकाश मिले तो उनको
एक जमाना हो गया
फिर भी आते रहे लोग , पढ़ते रहे उनसे
इस विद्यालय के छात्रों की
उम्र की कोई सीमा न थी
पन्द्रह हो पच्चीस हो ,तीस -पैतीस ,चालीस हो
पैतालीस पचपन आयु के पढ़ते रहे लोग उनसे 

गुरूजी
जो उम्र भर पढ़ाते रहे
और पढ़ते रहे लोग उनसे
इस विद्यालय की डिग्री में 
कभी सीलन , कभी चूहे 
या खो जाने का डर नहीं रहता 
गुरूजी का नाम उनके नाम के आगे जुड़ जाना 
जो पढ़ते रहे लोग उनसे 
वही डिग्री है 
जो उनके साथ है 
 चाहें कहीं भी रहें 
जो पढ़ते रहे लोग उनसे ।  

(तत्कालीन राज्यपाल माननीय श्री मोतीलाल वोरा पूज्य डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ,लखनऊ की तरफ से महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार से सम्मानित करते हुये )

स्मृतियों के रश्मिपुंज

चित्र  में  (बाएं से दायें ) डॉ0  सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय , पूज्य डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी , तत्कालीन  विधानसभा  अध्यक्ष  माननीय  केशरी नाथ  त्रिपाठी जी  डॉ0 त्रिपाठी जी  की "घाटी के परिसंवाद  " पुस्तक  का  विमोचन  करते  हुये  ।                                           

                  धरती की गोद में कभी -कभी ऐसे महनीय व्यक्तित्व का अवतरण होता है ,जिसके पौरुष और मेधा के अप्रतिम संयोग से अध्यात्म ,इतिहास और समाज के नये स्वरूप का निर्माण होता है । ऐसा ही प्रशस्य एवं उद्दात व्यक्तित्व था डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी का । इलाहाबाद जनपद के बेदौली (मांडा )ग्राम में जन्मे इस प्रखर पुरोधा ने अपने साहित्य - सृजन, आध्यात्मिक चिंतन एवं निर्भीक तथा अक्खड़ स्वभाव के कारण नित नये कीर्तिमान स्थापित किये ,नए पथों का सृजन किया । पुरूषार्थ ही मनुष्य की पहचान है ,इस विचारधारा का पोषण न केवल उन्होंने किया बल्कि उनके सानिध्य में आने वाले व्यक्तियों ने भी इसी का अनुसरण किया । डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी कभी गतानुगतिक नहीं रहे ।

                  डॉ0  त्रिपाठी  की साहित्य -सृजन यात्रा काफी लम्बी रही है । इनकी रचनाओं में लोक माटी की गंध और काव्य शास्त्रीय प्रौढ़ता तथा चिंतन के प्रखर स्फुल्लिंग सभी का सभी का एकत्र समन्वय मिलता है । उनकी पहली कविता  "हम कठिन करेजा के किसान " के आकाशवाणी से प्रकाशित होने से लेकर अंतिम कृति " संस्कृत साहित्य रचना का इतिहास "   तक की अवधि में आंजनेय , पर्वत से झांकता वक्र नयन , साहित्य में क्ष त्र ज्ञ , विस्मय के विकल्प  , आठवां अमृत , गाता हुआ पहाड़  ,आदि कितनी ऐसी रचनाएँ है  , जो उस कारयित्री एवं भावयित्री प्रतिभा की साक्षी है ।---पूज्य  पंडित  जी पर यह संक्षिप्त  टिप्पणी डॉ0 बिमल चन्द शुक्ल,  ई0 सी0 सी0  इलाहाबाद द्वारा  पंडितजी पर लिखा लघु काव्य संग्रह  '"गुरूजी " के लिए  भूमिका  स्वरूप लिखी थी ।भूमिका का यह आधा भाग ही है ।----