रविवार, 19 अगस्त 2012


               आपके स्वर में

 नहीं कोई अब घर में
जो कर पाए साहित्य सृजन
नए स्वर में
संभालना वही बहुत मुश्किल है
सृजन कर गए जो आप
अपने स्वर में
नहीं एक बूँद स्याही हमारी कलम में
जो कर पाए साहित्य सृजन
आपके स्वर में
इच्छा तो बहुत है गढ़ूं कुछ आपकी तरह
लिखूं कुछ आपकी तरह
पर बहुत मुश्किल है
साहित्य सृजन में
इन्तजार है कि 
हो कोई दूसरा 
आपकी तरह इस घर में 
जो कर पाए साहित्य सृजन
नए स्वर में
कुछ नयी रचे रचना ,हो जो 
साहित्य में नया 
रहे जो आपकी तरह 
आपके स्वर में  । 

                          ( पूज्य पंडित जी की याद में उनको श्रध्दांजलि )   आनंद