" आंजनेय " खण्ड काव्य की भूमिका में डॉ० बलदेव प्रसाद मिश्र जी ने लिखा है कि पूज्य जयशंकर त्रिपाठी जी का 'आंजनेय ' काव्य जयशंकर 'प्रसाद' जी की "कामायनी " परंपरा में लिखा गया है | संयोग वश पूज्य आचार्य त्रिपाठी जी के सम्बन्ध में कुछ विद्वानो से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ तो उन्होंने भी "आंजनेय "के लिए यही कहा कि पंडित जी का यह काव्य 'कामायनी ' के समकक्ष है | पांच सर्गो में (शून्य सर्ग , पूर्व सर्ग ,दक्षिण सर्ग , पश्चिम सर्ग और उत्तर सर्ग ) विभक्त मात्र १०८ पृष्ठों का यह खण्ड काव्य प्रणव प्रकाशन ,४० -ए, मोतीलाल नेहरु रोड , इलाहाबाद -२११००२ से (1984) प्रकाशित है | निश्चय ही आज नहीं तो कल पंडित जी के इस काव्य का सही मूल्यांकन होगा | इतिहास साक्षी है इस बात का व्यक्ति और व्यक्ति के लिखे का सही मूल्यांकन उसके न रहने के बाद ही होता है |
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