गुरूजी
गुरूजी
जो उम्र भर पढ़ाते रहे
और पढ़ते रहे लोग उनसे
विषय कोई भी अछूता न था
हर विषय पढ़ते रहे लोग उनसे
इतिहास हो ,हिन्दी हो या हो संस्कृत
विज्ञान और राजनीति की बात करते लोग उनसे
ज्योतिष हो , गणित हो या हो समाजशास्त्र
विधि और तंत्र की बात करते लोग उनसे
गुरूजी
जो उम्र भर पढ़ाते रहे
और पढ़ते रहे लोग उनसे
विद्यालय से अवकाश मिले तो उनको
एक जमाना हो गया
फिर भी आते रहे लोग , पढ़ते रहे उनसे
इस विद्यालय के छात्रों की
उम्र की कोई सीमा न थी
पन्द्रह हो पच्चीस हो ,तीस -पैतीस ,चालीस हो
पैतालीस पचपन आयु के पढ़ते रहे लोग उनसे
गुरूजी
जो उम्र भर पढ़ाते रहे
और पढ़ते रहे लोग उनसे
इस विद्यालय की डिग्री में
कभी सीलन , कभी चूहे
या खो जाने का डर नहीं रहता
गुरूजी का नाम उनके नाम के आगे जुड़ जाना
जो पढ़ते रहे लोग उनसे
वही डिग्री है
जो उनके साथ है
चाहें कहीं भी रहें
जो पढ़ते रहे लोग उनसे ।
(तत्कालीन राज्यपाल माननीय श्री मोतीलाल वोरा पूज्य डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ,लखनऊ की तरफ से महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार से सम्मानित करते हुये )
सही कहा आपने .पूरी तरह से सहमत.बहुत सार्थक प्रस्तुति. रफ़्तार जिंदगी में सदा चलके पायेंगें
जवाब देंहटाएंDhanyvaad mere blog par upasthiti ke liye
हटाएंसुन्दर उदगार!
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