बुधवार, 25 जुलाई 2012

स्मृतियों के रश्मिपुंज

चित्र  में  (बाएं से दायें ) डॉ0  सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय , पूज्य डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी , तत्कालीन  विधानसभा  अध्यक्ष  माननीय  केशरी नाथ  त्रिपाठी जी  डॉ0 त्रिपाठी जी  की "घाटी के परिसंवाद  " पुस्तक  का  विमोचन  करते  हुये  ।                                           

                  धरती की गोद में कभी -कभी ऐसे महनीय व्यक्तित्व का अवतरण होता है ,जिसके पौरुष और मेधा के अप्रतिम संयोग से अध्यात्म ,इतिहास और समाज के नये स्वरूप का निर्माण होता है । ऐसा ही प्रशस्य एवं उद्दात व्यक्तित्व था डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी का । इलाहाबाद जनपद के बेदौली (मांडा )ग्राम में जन्मे इस प्रखर पुरोधा ने अपने साहित्य - सृजन, आध्यात्मिक चिंतन एवं निर्भीक तथा अक्खड़ स्वभाव के कारण नित नये कीर्तिमान स्थापित किये ,नए पथों का सृजन किया । पुरूषार्थ ही मनुष्य की पहचान है ,इस विचारधारा का पोषण न केवल उन्होंने किया बल्कि उनके सानिध्य में आने वाले व्यक्तियों ने भी इसी का अनुसरण किया । डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी कभी गतानुगतिक नहीं रहे ।

                  डॉ0  त्रिपाठी  की साहित्य -सृजन यात्रा काफी लम्बी रही है । इनकी रचनाओं में लोक माटी की गंध और काव्य शास्त्रीय प्रौढ़ता तथा चिंतन के प्रखर स्फुल्लिंग सभी का सभी का एकत्र समन्वय मिलता है । उनकी पहली कविता  "हम कठिन करेजा के किसान " के आकाशवाणी से प्रकाशित होने से लेकर अंतिम कृति " संस्कृत साहित्य रचना का इतिहास "   तक की अवधि में आंजनेय , पर्वत से झांकता वक्र नयन , साहित्य में क्ष त्र ज्ञ , विस्मय के विकल्प  , आठवां अमृत , गाता हुआ पहाड़  ,आदि कितनी ऐसी रचनाएँ है  , जो उस कारयित्री एवं भावयित्री प्रतिभा की साक्षी है ।---पूज्य  पंडित  जी पर यह संक्षिप्त  टिप्पणी डॉ0 बिमल चन्द शुक्ल,  ई0 सी0 सी0  इलाहाबाद द्वारा  पंडितजी पर लिखा लघु काव्य संग्रह  '"गुरूजी " के लिए  भूमिका  स्वरूप लिखी थी ।भूमिका का यह आधा भाग ही है ।----                 

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